नाग पंचमी भारत की प्राचीन परंपराओं और आस्थाओं से जुड़ा एक प्रमुख पर्व है, जो प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से नाग देवता की पूजा और उनके प्रति श्रद्धा अर्पित करने के लिए मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के महराजगंज जनपद सहित अनेकों ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह देखा गया।
इस बार नाग पंचमी के अवसर पर महराजगंज के विभिन्न ग्राम सभाओं में सुबह से ही एक विशेष नजारा देखने को मिला। दूर-दराज के गांवों से लोग गाय के दूध के लिए एक-दूसरे के गांव की ओर जाते नजर आए। गाय का दूध इस दिन अत्यंत पवित्र और फलदायी माना जाता है, जिसे नाग देवता को अर्पित किया जाता है। लोगों की मान्यता है कि इस दिन गाय के दूध से नाग देवता को अभिषेक करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
गाय के दूध को लेकर दिखा भारी उत्साह:
सुबह होते ही गांव की गलियों में चहल-पहल शुरू हो गई। महिलाएं, बुजुर्ग, बच्चे और पुरुष सभी साफ-सुथरे कपड़ों में तैयार होकर घर से निकले। कई लोग अपने गांव में गाय न होने पर पड़ोसी गांवों की ओर निकल पड़े। कई जगहों पर लोगों ने लाइन में लगकर दूध लिया।
विशेष बात यह रही कि लोग बिना किसी स्वार्थ या लालच के एक-दूसरे की मदद करते नजर आए। जिनके पास दूध देने वाली गायें थीं, उन्होंने भी श्रद्धालुओं को बिना किसी मोल-भाव के फ्री में दूध उपलब्ध कराया।
परंपरा और संस्कृति का अद्भुत मेल:
नाग पंचमी का पर्व सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। इस दिन महिलाएं विशेष व्रत रखती हैं और नाग देवता की पूजा करती हैं। मिट्टी या चित्र के रूप में नाग देवता की मूर्ति बनाकर उसे दूध, धूप, दीप और पुष्प अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद विशेष रूप से बने पकवान जैसे पूड़ी, खीर, पुआ आदि का भोग लगाया जाता है।
ग्रामीण परिवेश में यह पर्व विशेष रूप से सामूहिकता और आपसी सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करता है। एक परिवार की तरह पूरा गांव एक साथ इस पर्व को मनाता है। लोग एक-दूसरे के घर जाकर पूजा में शामिल होते हैं और आशीर्वाद लेते हैं।
बुजुर्गों की यादें और बच्चों की उमंग:
इस अवसर पर बुजुर्गों ने भी अपनी पुरानी यादें ताजा कीं। गांव के एक बुजुर्ग श्री रामलाल यादव ने बताया कि जब वे छोटे थे तब उनकी दादी नाग पंचमी के दिन खास पकवान बनाती थीं और परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करते थे। बच्चों में भी इस पर्व को लेकर खास उत्साह देखा गया।
गाय के दूध के लिए उमड़ी भीड़, एक-दूसरे के घर जाने की संस्कृति और आपसी सम्मान ने यह सिद्ध कर दिया कि आज भी ग्रामीण भारत में परंपराएं जीवित हैं और उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं। नाग पंचमी केवल पूजा का दिन नहीं, बल्कि यह त्योहार भारतीय संस्कृति की उस मिठास और अपनत्व का प्रतीक है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजकर रखा गया है।
संवाददाता: राकेश चौधरी