संस्कृति किसी भी समाज की आत्मा होती है, और जब यह आत्मा संगीत व लोककला के स्वर में गूंजती है, तो वह न सिर्फ मनोरंजन का माध्यम बनती है, बल्कि समाज को जोड़ने और संवारने का साधन भी बन जाती है। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा इसी सोच को साकार करते हुए प्रदेश के कोने-कोने में आयोजित की जा रही कार्यशालाएं अब ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों तक अपनी पहुंच बना चुकी हैं।
इसी कड़ी में महराजगंज जनपद के सिसवा बाजार स्थित मलवेरी कॉन्वेंट स्कूल के परिसर में एक विशेष ग्रीष्मकालीन भजन कार्यशाला का आयोजन हुआ, जिसमें कला और संस्कृति का अनूठा संगम देखने को मिला। यह कार्यशाला 6 मई से 20 मई तक चली, जिसका नेतृत्व प्रदेश के चर्चित कलाकार व अकादमी सदस्य अमित अंजन तथा भजन गायक उमाशंकर जी ने किया।
भजन की कार्यशाला: संगीत साधना की नई शुरुआत
भजन केवल गीत नहीं होते, वे भावों का संप्रेषण होते हैं, आत्मा की पुकार होते हैं। इस कार्यशाला में दर्जनों युवा व बाल प्रशिक्षुओं ने भाग लेकर न केवल भजन गाने के तकनीकी पक्षों को जाना, बल्कि उसके आध्यात्मिक व सामाजिक महत्व को भी महसूस किया।
शिक्षार्थियों ने इस 15 दिवसीय सत्र में स्वर, ताल, लय, राग, भावाभिव्यक्ति जैसे महत्वपूर्ण आयामों को सीखा। अभ्यास सत्रों के माध्यम से उन्होंने अपनी कला में आत्मविश्वास पाया। कार्यशाला का वातावरण पूरी तरह साधना और समर्पण से भरा हुआ था।
प्रशस्ति पत्र वितरण: उपलब्धि का सम्मान
20 मई को कार्यशाला के समापन के अवसर पर एक विशेष आयोजन में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से प्रतिभागियों को प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। यह न केवल उनकी सीखने की यात्रा का प्रमाण था, बल्कि उनके लिए एक प्रेरणा भी बना — कि वे अपनी संगीत साधना को आगे और बेहतर स्तर पर ले जाएं।
प्रशस्ति पाने वाले प्रमुख नामों में देवेंद्र, चंद्रशेखर, पंकज सोनी, अंजली चौहान, अंशिका सिंह, सोनी कुशवाहा, श्रीकृष्ण आदि प्रशिक्षु शामिल रहे। इन बच्चों के चेहरे पर मिली इस पहचान से जो आत्मविश्वास दिखा, वह शब्दों से परे था।
सराहना और आभार: जो बनाए कार्यक्रम को संभव
कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए अमित अंजन ने न केवल प्रशिक्षकों और आयोजकों का आभार प्रकट किया, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार के संस्कृति व पर्यटन मंत्री श्री जयवीर सिंह जी, प्रमुख सचिव श्री मुकेश मेश्राम, अकादमी के निदेशक श्री शोभित नाहर, अध्यक्ष श्री जयंत खोत और उपाध्यक्षा श्रीमती विभा सिंह का भी विशेष धन्यवाद दिया।
उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि —
“संस्कृति की जड़ें मजबूत होंगी, तभी प्रदेश का भविष्य सशक्त होगा। यह कार्यशालाएं सिर्फ प्रशिक्षण नहीं, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम हैं।”
संस्कृति और सरकार: एक जिम्मेदारी, एक मिशन
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में संस्कृति को नई पहचान दी जा रही है। सरकार यह भलीभांति समझती है कि यदि हमें आने वाली पीढ़ियों को अपने मूल्यों, परंपराओं और लोककलाओं से जोड़ना है, तो यह प्रयास विद्यालयों और संस्थानों से आगे ले जाकर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाना होगा।
इसलिए हर जिले में भिन्न-भिन्न विधाओं जैसे लोक नृत्य, भजन गायन, लोक संगीत, नाट्य कला, चित्रकला आदि पर कार्यशालाएं करवाई जा रही हैं। यह न केवल सांस्कृतिक जागरूकता बढ़ा रही हैं, बल्कि प्रतिभाओं को मंच देने का अवसर भी प्रदान कर रही हैं।
प्रशिक्षु बोले: “हमने सीखा, समझा और अपनाया”
प्रतिभागियों ने भी इस पहल को बेहद उत्साहजनक बताया। एक प्रतिभागी अंजली चौहान ने कहा —
“पहली बार किसी गुरु से भजन गाना सीखा, अब मंदिर और मंच पर गाने का आत्मविश्वास है।”
वहीं पंकज सोनी ने बताया कि —
“स्वर और ताल का जो प्रशिक्षण यहां मिला, वह किताबों से नहीं मिल सकता। हमारी आवाज़ को सही दिशा मिली है।”
यह प्रतिक्रिया साबित करती है कि प्रशिक्षण से न केवल कला निखरती है, बल्कि व्यक्तित्व भी संवरता है।
स्थानीयता में वैश्विकता की झलक
यह कार्यक्रम एक प्रमाण है कि जब स्थानीय स्तर पर प्रतिभाओं को अवसर दिए जाते हैं, तो वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंच सकते हैं। जिस तरह से सिसवा बाजार जैसे कस्बे में उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने यह आयोजन किया, वह अपने आप में एक मिसाल है।
कला, शिक्षा और संस्कृति का समन्वय भविष्य की सामाजिक संरचना को मज़बूत करता है। कार्यशाला ने यह दिखा दिया कि ‘ग्रामीण भारत’ केवल खेत और खलिहान नहीं, बल्कि संस्कृति का पालक भी है।
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